Friday 25 March 2011









माँ
मैं सोचती हूं
बड़ी होकर मैं भी
खूब पढ़ लिखकर
कुछ नाम करूं.
चूल्हा चौका से
आगे बढ़कर
जग में अपना
परचम लहराऊं.
जानती हो माँ
तुमने हमारे लिए
अपना कल आज
और कल गँवा कर
हमारा लालन पालन
घर परिवार के लिए
पल पल गवां दिया
तुमने अपने लिए एक
पल भी अपना जीवन
नहीं जिया.
तुमने तो हमारी खातिर
अपने सपनों को खोया
हम में अपने सपने देखे
अब मैं तुम्हारे हर
सपने को पूरा करुँगी
खूब पढूंगी और माँ
अपने नाम के साथ
तुम्हारा नाम भी ऊँचा करुँगी|
तुम लड़की हो...





तुम लड़की हो...
सुनो!
जहाँ कुहासा हो
तुम वहाँ न जाना
जहाँ अँधेरा हो
वहाँ न जाना
तुम लड़की हो
ये मत भूलना
क्यों की तुम्हारा
लड़की होना किसी को
नहीं भाता है.
सुनो लड़की
इतराती, बलखाती
नदी की भांति
मत चलना
अपने हाव, भाव
संभल कर रखना.
ज़माने की निगाह
तुम पर है और
तुम्हारी हर हल चल
उनकी नजर में,
बस तुम नजरें झुककर
सहम सहम कर
डर डर कर चलो
क्यों की जन्मने और
ज़माने वाले यही चाहते
हैं तुमसे लड़की..!
बस ये याद रखना
तुम लड़की हो....

नारी..



नारी ही महकाती है 

सबके गुलशन की डाली को

नारी के आने से मिलती

भाव तृप्ति घर की क्यारी को.

नारी अपना स्वत्व मिटाकर
अपनों का जीवन संवारती 

खुद सहती है दुःख अनेकों

सुख अपनों को परोसती.

वह बचपन में पिता की,
जवानी में पति की, 

दीन बुढ़ापे में बच्चों की,
सहती है अधीनता|

अपना जीवन नहीं है अपना

सदा ही वह पराधीन है रहती 

फिर भी खुश हो करती सेवा

कभी किसे से कुछ ना  कहती 

नारी धरती, नारी अम्बर

नारी है जीवन का संबल

इसके बिन क्या घर समाज है ...



यादें..
जब मैं जन्मी जग में आई
पहले पहल चक्षु जब खोले
माँ पिता की स्नेह छाया में
तन मन पुलकित भाव सलोने.
मात पिता की थी मैं लाड़ली
बड़े जतन से पाला मुझको
नाज उठाकर हर पल मुझको
मात पिता ने बहुत दुलारा.
धीरे धीरे हुई बड़ी जब
विद्यालय को जाती मैं तब
काम धाम कुछ करे नहीं थी
बस अपनी ही दुनिया में रहती.
माँ की ममता, दुलार पिता का
अपनों की निर्मल छाया थी
बहुत चुलबुली नटखट नखरे
उनको सबसे अति प्यारी थी.
बड़ी हुई जब हुई सायानी
मात पिता की बढ़ी परेशानी
कब कैसी हो इसकी शादी?
पीले हाथ हों पति घर जाती..
जल्दी से एक लड़का देखा
झट शादी करने की ठानी
मेरे सपने, कुछ करने की
बात किसी ने कभी ना मानी.
दिन पर दिन साल दिवस
जब लगे पंख उड़ते जाते हैं
तब जाकर कुछ पल कुछ कल
के लम्हे याद हमें आते हैं.
आज माँ और नहीं पिता हैं
दोनों जल्दी गए अनंत को
तभी तो जल्दी सब कर डाला
जाने की जल्दी थी उनको.
बहुत सयाने थे वे अपने कुछ
आभास दिया ना हमको
फर्ज किये सब पूरे अपने
सौंप बड़ी जिम्मेदारी हमको.
बीते दिन जब याद आते हैं
नयन जलज मय हो जाते हैं
मात पिता की छाया थे जब
झट अनाथ क्यों हो जाते हैं?
जाना ही था कुछ कह जाते
जीवन की कुछ राह दिखाते
पहले हम गर समझ ही पाते
कुछ पल उनके संग बिताते.
याद बहुत आती हैं सच में
अपने माँ और अपने पिता की
अब यादों में संग सदा हैं
कुछ पल कुछ कल ही बस यादेँ.

Thursday 24 March 2011



होली है रंगों का त्यौहार
हरा गुलाबी अबीर गुलाल
कई रंग हैं इसके साथ
बस रंगों को पहचानो आप.
मन का खुला आसमान हो
तो भर जातें हैं रंग अनेकों
अपनों का , सपनों का संग हो
फिर जीवन होता खुशहाल।
तिमिर हटाते रंग प्रेम के
उजियारा होता है जीवन में
बढ़ता है फिर धवल प्रकाश
रंग बिरंगे पन्ने होकर
भाव संजोते जीवन संसार।
सबकी हो मनोकामना पूरी
सबको मिले मन की मनुहार ।।



जब तुम थे
तो मै सब कुछ थी ,
आज तुम नहीं
तो में कुछ भी नहीं ,
कल तुम थे
तुम्हारा साया था
आज तुम नहीं तो
मै किसका साया हू
मै कल भी तुम्हारी,
आज भी तुम्हारी हू ,
तुम कल भी मेरे अपने थे|
तुम आज भी मेरे अपने हो
में कल तुम्हे महसूस सकती थी,
मै आज भी महसूस करना चाहती हू|

Wednesday 23 March 2011

तुम्हारा प्यार..



तुम्हारा प्यार..
जीवन का सहारा
तूफ़ा मे किनारा
तुम्हारा प्यार...

भावों की सौगात
उम्र भर का साथ
तुम्हारा प्यारं...

आज कल परसों
मन मे फूली सरसों
तुम्हारा प्यार...

धरा कि नर्म घास
स्पदन का अहसास
तुम्हारा प्यार..

सर्दी कि गुनगुनी धूप
स्नेह प्रेम का रूप
तुम्हारा प्यार ...

हरे वृछ की पाती
जले दिए कि बाती
तुम्हारा प्यार ...

कभी लगता ज्योति
कभी लगता  मोती,
तुम्हारा प्यार ...

चूड़ियों की खनक ,
बिंदिया की चमक
तुम्हारा प्यार...

हाथो मे लगी मेहँदी मे
अंखियों मे लगे काजल मे
तुम्हारा प्यार...

उदासी मे आसुओं के बीच
विस्वास की कौंधती तस्वीर
तुम्हारा प्यार....




वो लड़की 





वो लड़की....
भोली सी
उलझी सी,
सुरमई आँखों में
उसकी सपने हैं
उर में
संगीत है
बातों मे उसकी
खिलते हुए फूल,
पैरों में
रुनझुन पैजन,
हाथों में
सपनों की रंगत,
अधरों में
प्यार के गीत,
मन में
वीणा की झंकार
दर्द से उसका
रिश्ता पुराना,
दुनियां को
उसने ना जाना,
गुमसुम रहती
दुःख सहती,
हँसते हँसते
जो रो देती,
जगते जगते
सो देती,
अनमोल निधि
खो देती.
अंतस मे
रस घोलती
उसकी बातें
उस जैसी सच्ची
आज भी मुझे
याद आती है
वो लड़की....
सच बहुत ही
याद आती है
वो लड़की....
ऐसी क्यों थी.......