Thursday 23 June 2011

                                                   मां गंगा..
                                               

कल,कल, छल,छल बहती रहती
सदियों से तुम जीवन देती
पाप पापियों के तुम धोती
जीवन दाता हे! मां गंगा।
भागीरथ प्रयास से हुई अवरित
धरती के संताप मिटाने
आर्यभूमि के कलुष मिटाकर
तुमने सारे कष्ट उबारे
निर्मल-निर्मल हे! मां गंगा।
तेरी पावस अविरल धारा
जीव जगत का बनी सहारा
तूने तटों पर अपने माता
अनेकों संस्कृतियों को पनपाया
तुम जीवन दर्शन हो सहारा
सदा से पावस हे मां गंगा।
तेरी निर्मल जल से ही
धुले पाप संताप सभी के
रहे स्वच्छ, निर्मल जल तुम्हारा
करते हैं संकल्प आज हम
तुमसे जीवन दाता मां गंगा।।

Thursday 9 June 2011


एक दिन मैं थी
तुम थे, हम थे
हमारा खुशियों का
संसार था।
मैं, तुम, हम
हंसते, मुस्कराते
संग-संग कई
भाव सजाते
लेकिन जब से
वो हमारे बीच आया
तुम, तुम और
मैं मैं ही रह गए ।
न भाव रहे वैसे
न स्वप्न,
न स्पंदन रहा वैसा।
हमारे तुम्हारे बीच
वो था हमारा या
तुम्हारा अहं, स्वार्थ
सुनो! क्या फिर से
हो पायेंगे
तुम और मैं
  हम ???

Wednesday 8 June 2011

                                                                   

हे! पथिक सुनो!
तुम सच जा रहे हो
मेरे शहर, मेरे गांव?
तो सुनो! तुम
जब जाओगे तुम मेरे शहर
वहां तुम्हें कल-कल करती
शांत भाव में लहराती बहती
जीवनदायिनी गंगा नदी मिलेगी।
उससे मेरा पता पूछना
तब तुम मेरे घर हो आना
वहीं कहीं मेरा घर होगा
उसके आंगन में होकर आना
मेरा बचपन वहीं छिपा है,
जहाँ खेला करती थी मै
गुड्डे गुडिया का खेल सलोना,
पथिक जरा कुछ संग में लाना।
मेरे घर आंगन की माटी
वहीं कही मात पिता की यादें
अपनों की कुछ होगी फरियादें
सब को तुम मिलकर आना
गंगा की पावन धारा से
मेरे बचपन की बातें करना
वहीं खड़ा इक मंदिर होगा
विश्वनाथ जी होकर आना
वहां पथिक तुम शीश नवाना
सभी कामना पूरी होंगी
बस भावों की भेंट चढ़ाना।
वरूणावत पर्वत समीप है
उसकी धूलि को जरा
तुम अपने माथे से लगाना,
मेरा बचपन यहीं है गुजरा
जरा सहज होकर तुम जाना
कुछ सपनों को पंख लगे थे
कुछ माटी में दफन हुए हैं
उनकी दुखती रग सहलाना
कुछ निर्मल कुछ पावस होकर
मेरी जन्म भूमि की माटी
गंगा का जल लेकर आना
हे! पथिक मेरी माटी के
दर्शन जो तुम पाओगे
धन्य धन्य तुम हो जाओगे |