Thursday 7 July 2011

                                                   
स्वर्ग भूमि है सच
ये हमारा गढ़वांल।
देवों की तपोभूमि
पग-पग में देवालय
कण-कण में शिव
शिव मय सब शिवालय।
नदियों की पावन धारा
हवाओं की मधुररिमा
दिग दिगन्त में नाद
देवताओं का  यहां वास।
सच अन्तस का छू जाता
हिवांल के देश की मधुरिमा
मेरे अन्तस में कहीं है गंगा
मैं भी तो उसी का अंश।।
 
गुलाब का ये नन्हा सा फूल
मेरी बगिया की गरिमा बढ़ाता
कांटों के बीच पलकर भी
सदा है देखो मुस्कराता।
पुलकित, हर्षित करता मन
नन्हा सा फूल बताता
सदा रहो खुश जीवन में
चाहे समय कैसा भी आता।
                             




कल-कल करती नदियां नाले
रिम-झिम, रिम-झिम मेघ सुहाने
बरखा की बूंदे हरसाती
धरती अम्बर गीत सुनाते
खेतों में हरियाली आती
नदियां पानी से भर जातीं
हरी भरी अब धरती दिखती
पानी से सब सिंचित करती।
खेत, पहाड़ो नालों से
पानी की जब धार बहाती
कल-कल करती ध्वनि उसकी
जीवन का संगीत है  सुनाती।