Thursday, 7 July 2011

                                                   
स्वर्ग भूमि है सच
ये हमारा गढ़वांल।
देवों की तपोभूमि
पग-पग में देवालय
कण-कण में शिव
शिव मय सब शिवालय।
नदियों की पावन धारा
हवाओं की मधुररिमा
दिग दिगन्त में नाद
देवताओं का  यहां वास।
सच अन्तस का छू जाता
हिवांल के देश की मधुरिमा
मेरे अन्तस में कहीं है गंगा
मैं भी तो उसी का अंश।।
 
गुलाब का ये नन्हा सा फूल
मेरी बगिया की गरिमा बढ़ाता
कांटों के बीच पलकर भी
सदा है देखो मुस्कराता।
पुलकित, हर्षित करता मन
नन्हा सा फूल बताता
सदा रहो खुश जीवन में
चाहे समय कैसा भी आता।
                             




कल-कल करती नदियां नाले
रिम-झिम, रिम-झिम मेघ सुहाने
बरखा की बूंदे हरसाती
धरती अम्बर गीत सुनाते
खेतों में हरियाली आती
नदियां पानी से भर जातीं
हरी भरी अब धरती दिखती
पानी से सब सिंचित करती।
खेत, पहाड़ो नालों से
पानी की जब धार बहाती
कल-कल करती ध्वनि उसकी
जीवन का संगीत है  सुनाती।

Thursday, 23 June 2011

                                                   मां गंगा..
                                               

कल,कल, छल,छल बहती रहती
सदियों से तुम जीवन देती
पाप पापियों के तुम धोती
जीवन दाता हे! मां गंगा।
भागीरथ प्रयास से हुई अवरित
धरती के संताप मिटाने
आर्यभूमि के कलुष मिटाकर
तुमने सारे कष्ट उबारे
निर्मल-निर्मल हे! मां गंगा।
तेरी पावस अविरल धारा
जीव जगत का बनी सहारा
तूने तटों पर अपने माता
अनेकों संस्कृतियों को पनपाया
तुम जीवन दर्शन हो सहारा
सदा से पावस हे मां गंगा।
तेरी निर्मल जल से ही
धुले पाप संताप सभी के
रहे स्वच्छ, निर्मल जल तुम्हारा
करते हैं संकल्प आज हम
तुमसे जीवन दाता मां गंगा।।

Thursday, 9 June 2011


एक दिन मैं थी
तुम थे, हम थे
हमारा खुशियों का
संसार था।
मैं, तुम, हम
हंसते, मुस्कराते
संग-संग कई
भाव सजाते
लेकिन जब से
वो हमारे बीच आया
तुम, तुम और
मैं मैं ही रह गए ।
न भाव रहे वैसे
न स्वप्न,
न स्पंदन रहा वैसा।
हमारे तुम्हारे बीच
वो था हमारा या
तुम्हारा अहं, स्वार्थ
सुनो! क्या फिर से
हो पायेंगे
तुम और मैं
  हम ???

Wednesday, 8 June 2011

                                                                   

हे! पथिक सुनो!
तुम सच जा रहे हो
मेरे शहर, मेरे गांव?
तो सुनो! तुम
जब जाओगे तुम मेरे शहर
वहां तुम्हें कल-कल करती
शांत भाव में लहराती बहती
जीवनदायिनी गंगा नदी मिलेगी।
उससे मेरा पता पूछना
तब तुम मेरे घर हो आना
वहीं कहीं मेरा घर होगा
उसके आंगन में होकर आना
मेरा बचपन वहीं छिपा है,
जहाँ खेला करती थी मै
गुड्डे गुडिया का खेल सलोना,
पथिक जरा कुछ संग में लाना।
मेरे घर आंगन की माटी
वहीं कही मात पिता की यादें
अपनों की कुछ होगी फरियादें
सब को तुम मिलकर आना
गंगा की पावन धारा से
मेरे बचपन की बातें करना
वहीं खड़ा इक मंदिर होगा
विश्वनाथ जी होकर आना
वहां पथिक तुम शीश नवाना
सभी कामना पूरी होंगी
बस भावों की भेंट चढ़ाना।
वरूणावत पर्वत समीप है
उसकी धूलि को जरा
तुम अपने माथे से लगाना,
मेरा बचपन यहीं है गुजरा
जरा सहज होकर तुम जाना
कुछ सपनों को पंख लगे थे
कुछ माटी में दफन हुए हैं
उनकी दुखती रग सहलाना
कुछ निर्मल कुछ पावस होकर
मेरी जन्म भूमि की माटी
गंगा का जल लेकर आना
हे! पथिक मेरी माटी के
दर्शन जो तुम पाओगे
धन्य धन्य तुम हो जाओगे |

Tuesday, 17 May 2011




तुम्हारी कविता ....

तुम्हारी कविता ....
रवि कि रौशनी
आलोकित मुझे कर जाती है ,
तुम्हारी कविता ...
चंदा कि चांदनी
शीतल मुझे कर जाती है
तुम्हारी कविता .....
मदिर मे बजती मंगल ध्वनी,
पवित्र मुझे कर जाती है
तुम्हारी कविता ...
भावनाओ कि महक ,
सुगन्धित मुझे कर जाती है
तुम्हारी कविता ...
पछियों कि मधुर ध्वनी,
आनंदित मुझे कर जाती है .