जब मैं जन्मी जग में आई
पहले पहल चक्षु जब खोले
माँ पिता की स्नेह छाया में
तन मन पुलकित भाव सलोने.
मात पिता की थी मैं लाड़ली
बड़े जतन से पाला मुझको
नाज उठाकर हर पल मुझको
मात पिता ने बहुत दुलारा.
धीरे धीरे हुई बड़ी जब
विद्यालय को जाती मैं तब
काम धाम कुछ करे नहीं थी
बस अपनी ही दुनिया में रहती.
माँ की ममता, दुलार पिता का
अपनों की निर्मल छाया थी
बहुत चुलबुली नटखट नखरे
उनको सबसे अति प्यारी थी.
बड़ी हुई जब हुई सायानी
मात पिता की बढ़ी परेशानी
कब कैसी हो इसकी शादी?
पीले हाथ हों पति घर जाती..
जल्दी से एक लड़का देखा
झट शादी करने की ठानी
मेरे सपने, कुछ करने की
बात किसी ने कभी ना मानी.
दिन पर दिन साल दिवस
जब लगे पंख उड़ते जाते हैं
तब जाकर कुछ पल कुछ कल
के लम्हे याद हमें आते हैं.
आज माँ और नहीं पिता हैं
दोनों जल्दी गए अनंत को
तभी तो जल्दी सब कर डाला
जाने की जल्दी थी उनको.
बहुत सयाने थे वे अपने कुछ
आभास दिया ना हमको
फर्ज किये सब पूरे अपने
सौंप बड़ी जिम्मेदारी हमको.
बीते दिन जब याद आते हैं
नयन जलज मय हो जाते हैं
मात पिता की छाया थे जब
झट अनाथ क्यों हो जाते हैं?
जाना ही था कुछ कह जाते
जीवन की कुछ राह दिखाते
पहले हम गर समझ ही पाते
कुछ पल उनके संग बिताते.
याद बहुत आती हैं सच में
अपने माँ और अपने पिता की
अब यादों में संग सदा हैं
कुछ पल कुछ कल ही बस यादेँ.
हमसे मत पूछो अब वो कहाँ रहा करते है,
ReplyDeleteहम ना भूल सके किसके लिए जिया करते है !