Thursday 9 June 2011


एक दिन मैं थी
तुम थे, हम थे
हमारा खुशियों का
संसार था।
मैं, तुम, हम
हंसते, मुस्कराते
संग-संग कई
भाव सजाते
लेकिन जब से
वो हमारे बीच आया
तुम, तुम और
मैं मैं ही रह गए ।
न भाव रहे वैसे
न स्वप्न,
न स्पंदन रहा वैसा।
हमारे तुम्हारे बीच
वो था हमारा या
तुम्हारा अहं, स्वार्थ
सुनो! क्या फिर से
हो पायेंगे
तुम और मैं
  हम ???

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