तुम थे, हम थे
हमारा खुशियों का
संसार था।
मैं, तुम, हम
हंसते, मुस्कराते
संग-संग कई
भाव सजाते
लेकिन जब से
वो हमारे बीच आया
तुम, तुम और
मैं मैं ही रह गए ।
न भाव रहे वैसे
न स्वप्न,
न स्पंदन रहा वैसा।
हमारे तुम्हारे बीच
वो था हमारा या
तुम्हारा अहं, स्वार्थ
सुनो! क्या फिर से
हो पायेंगे
तुम और मैं
हम ???
Wow! bahut hi sunder rachna.
ReplyDeleteshubhkamnayen
bahut hi achhi rachana..man ko chho gayi..
ReplyDeleteकविता पर बहुत बहुत शुभ-कामनाएं !
ReplyDeleteBhawpuran..kavita...man ko chugayi.
ReplyDeleteBahut sundar bhaw.
ReplyDeletejee
ReplyDelete