मैं तुम्हारे साथ आ रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे न समझना
मैं तुम्हे समझ रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे न छोड़ना
मै चलने कि कोशिश कर रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे न रुलाना
मै हंसने कि कोशिश कर रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे वक़्त देना
मै अपने आप को बदल रही हूँ.
ऐ वक़्त मेरे साथ रहना
मै तुम्हारे साथ ही आ रही हूँ.
ऐ वक्त जरा ठहरना
मैं कुछ तलाश रही हूँ.
ऐ वक्त जरा रुकना
मैं जरा थक सी गयी हूँ.
ऐ वक्त जरा पढ़ना
मैं कुछ लिखने लगी हूँ.
ऐ वक्त जरा चुप रहना
मैं जरा कहने लगी हूँ.
ऐ वक्त कभी संभलो
मैं बिखरने लगी हूँ.
कभी मेरी भी सुनना
हरदम तुम्हारी सुनती हूँ
कभी समय दो कभी रुको
जरा कुछ रचने बसने लगी हूँ.
संवेदना से भरपूर बेहतरीन रचना ! बहार जैसे पतझड़ बीतने के बाद दरख्तों पर आ जाती है ! मानव जीवन में अवसान ही उसकी नियति में होता है ! सुन्दर रचना ! बधाई
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