अजीब पहेली कभी लगे सहेली.
कभी अठखेली, अनसुलझी अकेली
कभी पटरी पर चलती रेल
कभी हंसी कभी खेल.
कभी कसैला जैसा करेला
कभी लगता पल पल विषैला।
भावों की परत दर परत
अनजानी, कम ही पहचानी
अपनों का संग
जैसा खिलता वसंत
भावों की पगड़ंडी जिसमें
हंसी, ठिठौली, मिलन
और कभी-कभी ओजमय रंगत।
धूप कभी छांव शहर कभी गांव
बेतरतीब राहों पर अनजाना सफर
दर्द और दु:ख कभी मीठा कभी जहर
जीवन की अठखेली और पहेली
जीवन अजीब सी दास्तां
जीवन की डगर बहुत ही विकट
जो लगता दूर वो होता निकट
जो होता पास वह सिर्फ अहसास
कैसी ये जीवन की पाती
न समझे तुम,
न मुझे समझ आती.
जी रहे हैं हम तुम
बस अपनी अपनी भांति।। ...)
Waha Jiwan ke har Darshtant ko Jiwant karti kavita.. sahi kaha apne Jiwan Anubhuti aur Ghatit bigathit ki hi pahali to ha... Sadhuwad apko Anita ji.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी "जीवन की डगर" पर आधारित कविता...!! हमारी तरफ से पेशा हैं यह 4 पंक्तियां :
ReplyDeleteज़िन्दगी ग़ज़ल है इ़से यूँ ही गाते रहिये,
हर लम्हा शायरी है यूँ ही सुनाते रहिये,
अगर आ जाये हंसी किसी लम्हे पर,
तो कहिये और वाहवाही पाते रहिये !
bas...is sab ka mishran hi to jivan hai...
ReplyDeletelahron pr chali naaw hai jindagi
kabhi dhoop to kabhi chhanw hai jindgi...
anubhwon ki aanch me pak kar nikhaar aayega
chun lena shabd suljhe hue nikhaar aayega..
abhi aur achchhe dhang se piro sakti ho shabdo ko maal me.....sundar abhivyakti..
sunder jeevan daarshan, bas yahi to jeevan hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
JIDGI RK PAHELI HAI<
ReplyDeleteESE HAR PAL JEENA PADEGA>>>>>>>>>
Bahut sundar rachna..badhai ho..ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता अनीता जी। साधुवाद।
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