मेरे भाव.......
कुछ शब्दों को आकार देती
तब जाकर कुछ कहती।
मन में उठते अनेकों भाव
पल-पल बदलता विचारों का प्रवाह
क्या-क्या उर में भाव जगे
कुछ लिख जाती कुछ रह जाते।
सोच रही मैं भी भाव तो हूं
बस बनकर इक भाव अधूरा।
सबमें न जाने कहां खो गये।
मैं भी मेरी कविता की मानिंद
पंक्ति सधी थी जीवनपथ पर
बढ़ी मगर कुछ गढ़ न सकी
अपने सपनों की कविता सम
जो छूट गई बिन लिखी कहीं।
फिर मन कहता कुछ नहीं हुआ
अपनों का संग और अपनाघर
उनकी खातिर किया सर्मपण।
लेकिन मेरे भाव जगे हैं
मेरी कलम मेरी रचना मे
लिखकर कहकर भावों में
जो आता है लिख लेती हूं
जीवन उपवन महक रहा है।
ये क्या कम मेरे जीवन में..
अपने उर अपने सपनों को
भाव रंगों का मैं ही भरूंगी।
अर्ध राह में बिन आकार के
अब कविता न मरने दूंगी।
लिखकर अपने भाव कहूँगी
मैं अपना अब अर्थ गढ़ूंगी|
Bhaw jage jab.. pankti saje tab
ReplyDeleteracha basna aur kuch karna kahan
hamare bas me ye sab....?
Bhawon ke tum paradhi dhara ho
Tabhi to sundar bhaw sajati
Lekha aur baton me hardam
Amrit ki barsa tum karti...
Bahw hain hi ase ki kahin bhi jag jate hain.. sahejlena bahut badi nedhi ha ji... keep it up.