Friday 25 March 2011









माँ
मैं सोचती हूं
बड़ी होकर मैं भी
खूब पढ़ लिखकर
कुछ नाम करूं.
चूल्हा चौका से
आगे बढ़कर
जग में अपना
परचम लहराऊं.
जानती हो माँ
तुमने हमारे लिए
अपना कल आज
और कल गँवा कर
हमारा लालन पालन
घर परिवार के लिए
पल पल गवां दिया
तुमने अपने लिए एक
पल भी अपना जीवन
नहीं जिया.
तुमने तो हमारी खातिर
अपने सपनों को खोया
हम में अपने सपने देखे
अब मैं तुम्हारे हर
सपने को पूरा करुँगी
खूब पढूंगी और माँ
अपने नाम के साथ
तुम्हारा नाम भी ऊँचा करुँगी|

2 comments:

  1. Bahut Sundar anubhuti. apki kavita ka marm aur uska main thought bahut hi soch wala aur gahra hota hai. Sadhuwad apko aur aasha karta hain ki bhaviwsya me aapki lekhni me bahut nikhar aye aur ucha mukam hasil ho.

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  2. उनका सहारा था तो कांटो पर भी सो लेते थे,
    अब फूल मय्सर हें मगर नींद ही नहीं आती !

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