Friday 1 April 2011

समय



समय
कब कैसे बीता पता ही न चला
लगता है जैसे कल ही की बात है
जब बच्ची थी, स्कूल जाती थी
माँ पिता  के गले लगकर
बहुत नाज नखरे करती थी..
समय पंख लगाकर उड़ता गया
और मेरा बचपन पीछे छूट गया
जीवन की डगर में आगे बढती रही
लेकिन मेरे कुछ अपने कुछ सपने
पीछे रह गये अधूरी आस की भांति.
कब सयानी हुई, कब शादी हो गयी
बेटी से बहू और बहू से माँ बन गई
संबंधो की ड़ोर में बंधती गई इस तरह
अपने लिए तो समय ही नहीं रहा
मेरे कुछ सपने थे जिंदगी में कभी
इस भागम भाग में कहाँ गुम गये..?
समय से बहुत कुछ पाया है मैंने
बहुत कुछ खो भी गया इसे दौड़ में...

1 comment:

  1. जीवन की यही एक सच्ची डगर है !

    "हमें उन राहों पर चलना है,
    जहां गिरना और सभलना है,
    जब तक ना लगन हो सीने में,
    बेकार है ऐसे जीने में !"

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