Friday 1 April 2011

मौत से सामना.....


डॉक्टर ने कह दिया, अब न ये बचेगी
जीवन डोर न अब खीच सकेगी
सुनकर सब हतप्रभ,ग़मगीन चहुँ ओर
मेरे उर कि आशा में बनी रही एक ड़ोर.
सलाह दर सलाह मशविरा सभी का
पल-छिन, दिन बस इतना ही जीवन इसका,
एक पल मैं अन्दर से हिल सी गयी
जब मौत कि आहट मेरे कानो मे पड़ी.
आभास हुआ अब न मैं जी पाऊँगी
अपने नौनिहाल अपनों को अधर मे छोड़ जाउंगी
बेटे कि याद ने अन्दर तक कचोटा
अनिश्चित भय ने मेरा रोम रोम झझकोरा
अपने पराये सब बिस्मित हो निहारते
अब चंद घड़ी कि मेहमां जान दुलारते,
मेरे अंतस मे एक जिज्ञासा बलवती हुई
मौत केसे आती है जानने कि चाह बढ़ी.
कैसे आएगी मौत लेने क्या कहेगी...
जब आएगी तो क्या झपट जीवन लेगी?
पर्दा हिलता या खट सी आवाज होती
मौत कि आहट है ये समझती.
अपनों की लाचारी दुःख कि ये आपार घड़ी
मेरे उर मे जिज्ञासा भविष्य कि बढ़ी
ब्यक्त में मैं खुश सी दिखती
खबर मौत की पा जरा भी ना डोली.
लोग सोचते पागल सदमे से होली
भय मौत का सुन मति इसकी पलटी
समय जैसे-जैसे बीत रहा था
दिल में जीने की ख्वाहिश की बढती.
एक औरत फरियाद कुरान की आयतें
सुफल हो गई जान मेरी बचा के
उसने दुलारा दिया था सहारा
बचेगी तू सच में जरा ना घबराना.
बहुत कुछ गवां कर ये जीवन था पाया
जन्म जैसे मेरा हुआ था दुबारा
साक्षात् मौत से हुआ था हमारा
जो सोचा नहीं था वो अनुभव हुआ था...

2 comments:

  1. लाज़वाब है अनिता जी यह सुन्दर रचना !

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  2. कुछ मीठा तो कुछ तीखा है,
    कुछ तीखा तो कुछ मीठा है,

    जीवन के दस्तूर निराले,
    धूप-छाँव घटते-बढ़ते हैं,

    जैसे जैसे दिन-रात चलते हैं,
    एक एक पल में जीवन देखो,

    खुशी खुशी है पल पल में,
    अगले पल हैं गम आ जाते !
    'उदय'

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