Monday 25 April 2011



वो....

वो फुटपाथ पर बैठी

फटे हाल रहकर भी
जीती है असीम संतोष
और धीरज के साथ.
ये फुटपाथ ही उसका घर
यही उसका संसार फिर भी
किसी से गिला ना शिकवा
दुःख सहना उसका नसीब
बेचारी लाचार और मजबूर.
बचपन उसका कुम्लाया
धूप, गर्मी में हुलसाया
अभाव में बिता यौवन
जीवन जैसे है बस पतझर .
अपने आंसू पी जाती है
बेटी को का मुख देख बेचारी
पल पल देखो है घबराती
कैसे बेटी को वो पाले..?
तन को वसन ना सूखी रोटी
दिन दिन रहती भूखी बेटी.
देह तपी और जी हुलसाया
एक दिन तब ऐसा भी आया
बस बेटी को सौंप ठिकाना
वक्त से पहले हुई रवाना.
हाय ! विधाता तेरी लीला
कैसे दिन काटेगी सुशीला
बिन माँ की ये बेटी कैसे
चौराहे में रह पायेगी ..?
पग पग में है छल छलवा
कैसे ये अब ये दिन काटेगी .?
हाय बिधाता तेरी लीला
कैसे अबला जी पायेगी...??

3 comments:

  1. Bahut hi Marmik aur Jhakjhorne wali Kavita. Dil ko chu gaye apke bhaw.. Ati sundar ji.

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  2. achchha lik rahi hai...tumhen door tak jaana hai.
    likhti rahengi to aur bhi achchhi rachnaaen kosh se foot padengi...shubhkaamnaaen....

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  3. वो फटेहाल , फुटपाथ पर बेठी बुदिया , काफी मार्मिक ढंग से लिखा आपने सच मै कुछ सोचने को मजबूर करती है ये रचना धन्यवाद ..

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