Friday 1 April 2011


तुम कहते हो!
मुझे सहेजना  संवारना
जोड़ना, संभालना
अच्छी तरह से आता है.
तभी तो हरदम
तुम्हारे, मेरे संबंधों को
रिश्तों की ड़ोर को
अपने परायों को
रिश्तों के भावों को
हर हाल में संभाल कर रखा है.
मेरी हर कोशिश रही
की हमारा घर संसार
अपनों का स्नेह और प्यार
कभी ना कम हो ना कभी
किसी प्रकार टूटन हो.
इसके लिए मैंने चाहे
अपने जीवन, अपने स्वत्व और
सपनों को मिटा दिया.
हां सच है ये...!

2 comments:

  1. कौन कहता है बंजर जमीं पे फूल खिल नहीं सकते
    हौसले और जज्बे की मेहनत को हर कोई समझे कैसे !

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  2. Stree ko isiliye prithvi ki tarah mahaan mana jata hai....dharti....dhaaran karti hai...aur deti jaati hai......
    ati suendar bhaw pradhan rachna....

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