Thursday 7 April 2011


फूल वाली लड़की..

सुबह मुंह अंधेरे फूल वाले से
फूल लेकर उनको सहेजती
संवारती , कुछ को गुलदस्ता
किसी को कली बना रखती।
फूल ले लो..... फूल ले लो......
   दिनभर आवाज़ लगाती..........
सड़क, चौराहे पर गाड़ियों के
पीछे भागती वो लड़की
लोगों को खुशी के पल,
भेंट के लिए फूल बेचती
अपनी खातिर दो जून की
रोटी इनसे जुटाती वो लड़की।
उसे क्या मतलब इनकी महक से
इनकी चमक से और
इनकी रंगत से उसे तो बस
रोटी का जरिया हैं ये फूल
उसके जीवन में जब कभी
वसंत ही नही आया तो
क्या जाने फूलों का रंग उनकी सुगध..?
उसके लिए तो यह फुटपाथ
उसका घर, संसार यहीं जन्मी
रोटी के लिए लड़ती, झगड़ती
और यहीं कहीं दौड़ते दौड़ते
एकदिन खो जायेगी...वो फूल वाली लड़की।

3 comments:

  1. "अपने खातिर दो जून की,
    रोटी इनसे जुटाती वो लडकी"

    बहुत ही मार्मिक कविता है यह अनिता जी !

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  2. badi hi sangdil hai jindagi
    inke li to tangdil hai jindagi....sachchaai pesh kari ek skshakt kavita.......badhaiyaan

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