Friday 1 April 2011


जीवन 


नदी किनारे अचानक
मन में ख्याल आया
जीवन भी तो नदी की
मानिंद ही चलायमान
निर्बाध और निरंतरता
लिए चला जा रहा  है
देखो ना..! पल, पल
दिन गुजरते जा रहे
कब बचपन गया..
कब जवानी आई और
देखो तो तनिक देह को
गौर करो तो तुम्हे भी
मेरी तरह महसूस होगा
आगाज बुढ़ापे का हौले ही
सही पर अगर ईमानदारी
और निश्चलता से देखोगे तो
समझ जाओगे की समय
किस गति से गुजर रहा  है
अपने निशान कुछ समेटे और
कुछ छोडकर अहसास करता
कल आज और कल का
जीवन की नश्वरता और
पल पल का.
ये अलग बात है की
हम इसे जानकर भी
स्वीकार नहीं करते.

1 comment:

  1. हम इस दुनियाँ में अपनी आँखें बंद करके आये थे
    अपना कुछ था ही नहीं!
    यह दौलत वो शौरत हमें हमारे ही प्रेमियों ने बख्शी,
    हमारा था ही क्या जो खो दिया ?
    यह ज़िन्दगी पाने के लिए है !
    "अनिता जी !

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