Thursday, 7 July 2011

                                                   
स्वर्ग भूमि है सच
ये हमारा गढ़वांल।
देवों की तपोभूमि
पग-पग में देवालय
कण-कण में शिव
शिव मय सब शिवालय।
नदियों की पावन धारा
हवाओं की मधुररिमा
दिग दिगन्त में नाद
देवताओं का  यहां वास।
सच अन्तस का छू जाता
हिवांल के देश की मधुरिमा
मेरे अन्तस में कहीं है गंगा
मैं भी तो उसी का अंश।।
 
गुलाब का ये नन्हा सा फूल
मेरी बगिया की गरिमा बढ़ाता
कांटों के बीच पलकर भी
सदा है देखो मुस्कराता।
पुलकित, हर्षित करता मन
नन्हा सा फूल बताता
सदा रहो खुश जीवन में
चाहे समय कैसा भी आता।
                             




कल-कल करती नदियां नाले
रिम-झिम, रिम-झिम मेघ सुहाने
बरखा की बूंदे हरसाती
धरती अम्बर गीत सुनाते
खेतों में हरियाली आती
नदियां पानी से भर जातीं
हरी भरी अब धरती दिखती
पानी से सब सिंचित करती।
खेत, पहाड़ो नालों से
पानी की जब धार बहाती
कल-कल करती ध्वनि उसकी
जीवन का संगीत है  सुनाती।

Thursday, 23 June 2011

                                                   मां गंगा..
                                               

कल,कल, छल,छल बहती रहती
सदियों से तुम जीवन देती
पाप पापियों के तुम धोती
जीवन दाता हे! मां गंगा।
भागीरथ प्रयास से हुई अवरित
धरती के संताप मिटाने
आर्यभूमि के कलुष मिटाकर
तुमने सारे कष्ट उबारे
निर्मल-निर्मल हे! मां गंगा।
तेरी पावस अविरल धारा
जीव जगत का बनी सहारा
तूने तटों पर अपने माता
अनेकों संस्कृतियों को पनपाया
तुम जीवन दर्शन हो सहारा
सदा से पावस हे मां गंगा।
तेरी निर्मल जल से ही
धुले पाप संताप सभी के
रहे स्वच्छ, निर्मल जल तुम्हारा
करते हैं संकल्प आज हम
तुमसे जीवन दाता मां गंगा।।

Thursday, 9 June 2011


एक दिन मैं थी
तुम थे, हम थे
हमारा खुशियों का
संसार था।
मैं, तुम, हम
हंसते, मुस्कराते
संग-संग कई
भाव सजाते
लेकिन जब से
वो हमारे बीच आया
तुम, तुम और
मैं मैं ही रह गए ।
न भाव रहे वैसे
न स्वप्न,
न स्पंदन रहा वैसा।
हमारे तुम्हारे बीच
वो था हमारा या
तुम्हारा अहं, स्वार्थ
सुनो! क्या फिर से
हो पायेंगे
तुम और मैं
  हम ???

Wednesday, 8 June 2011

                                                                   

हे! पथिक सुनो!
तुम सच जा रहे हो
मेरे शहर, मेरे गांव?
तो सुनो! तुम
जब जाओगे तुम मेरे शहर
वहां तुम्हें कल-कल करती
शांत भाव में लहराती बहती
जीवनदायिनी गंगा नदी मिलेगी।
उससे मेरा पता पूछना
तब तुम मेरे घर हो आना
वहीं कहीं मेरा घर होगा
उसके आंगन में होकर आना
मेरा बचपन वहीं छिपा है,
जहाँ खेला करती थी मै
गुड्डे गुडिया का खेल सलोना,
पथिक जरा कुछ संग में लाना।
मेरे घर आंगन की माटी
वहीं कही मात पिता की यादें
अपनों की कुछ होगी फरियादें
सब को तुम मिलकर आना
गंगा की पावन धारा से
मेरे बचपन की बातें करना
वहीं खड़ा इक मंदिर होगा
विश्वनाथ जी होकर आना
वहां पथिक तुम शीश नवाना
सभी कामना पूरी होंगी
बस भावों की भेंट चढ़ाना।
वरूणावत पर्वत समीप है
उसकी धूलि को जरा
तुम अपने माथे से लगाना,
मेरा बचपन यहीं है गुजरा
जरा सहज होकर तुम जाना
कुछ सपनों को पंख लगे थे
कुछ माटी में दफन हुए हैं
उनकी दुखती रग सहलाना
कुछ निर्मल कुछ पावस होकर
मेरी जन्म भूमि की माटी
गंगा का जल लेकर आना
हे! पथिक मेरी माटी के
दर्शन जो तुम पाओगे
धन्य धन्य तुम हो जाओगे |

Tuesday, 17 May 2011




तुम्हारी कविता ....

तुम्हारी कविता ....
रवि कि रौशनी
आलोकित मुझे कर जाती है ,
तुम्हारी कविता ...
चंदा कि चांदनी
शीतल मुझे कर जाती है
तुम्हारी कविता .....
मदिर मे बजती मंगल ध्वनी,
पवित्र मुझे कर जाती है
तुम्हारी कविता ...
भावनाओ कि महक ,
सुगन्धित मुझे कर जाती है
तुम्हारी कविता ...
पछियों कि मधुर ध्वनी,
आनंदित मुझे कर जाती है .

Tuesday, 26 April 2011


इंतजार ...

उस अजनबी के
इंतजार मे
बह गया नैनो से
मेरा काजल...
बैठी रहती हू
देहरी पर
उसके आने कि
बाट जोहती ....
भोर से साँझ तक
राह तकती ....
रोज़ जलाती दिया
उसके नाम का...
कि शायद वो अजनबी
दिए के उजाले में ....
अपने कदमो के निसा
ढूँढते हुए वापिस आ जाये
और मेरा इंतजार
ख़त्म हो ....

Monday, 25 April 2011





सोचती हूं ये जीवन भी क्या है?
अजीब पहेली कभी लगे सहेली.
कभी अठखेली, अनसुलझी अकेली
कभी पटरी पर चलती रेल
कभी हंसी कभी खेल.
कभी कसैला जैसा करेला
कभी लगता पल पल विषैला।
भावों की परत दर परत
अनजानी, कम ही पहचानी
अपनों का संग
जैसा खिलता वसंत
भावों की पगड़ंडी जिसमें
हंसी, ठिठौली, मिलन
और कभी-कभी ओजमय रंगत।
धूप कभी छांव शहर कभी गांव
बेतरतीब राहों पर अनजाना सफर
दर्द और दु:ख कभी मीठा कभी जहर
जीवन की अठखेली और पहेली
जीवन अजीब सी दास्तां
जीवन की डगर बहुत ही विकट
जो लगता दूर वो होता निकट
जो होता पास वह सिर्फ अहसास
कैसी ये जीवन की पाती
न समझे तुम,
न मुझे समझ आती.
जी रहे हैं हम तुम
बस अपनी अपनी भांति।। ...)



अमराई ने ली अंगड़ाई
बौर खिली अरू अमियां आई
कोयल सुन्दर गीत सुनाती
सबके मन को है अति भाती।
चहुं दिश फूल खिले हैं न्यारे
धरती अम्बर लगते प्यारे
नदिया गाती पर्वत गाते
वन उपवन सबको हर्षाते।
खेतों में गेहूं की बाली
बगिया को सींचे है माली
वैशाखी के गीत सुनाकर
फसल काटते है मतवाले।
रंग बिरंगी अपनी धरती
भांति-भांति के पुष्प् निराले
बोली-भाषा रीति भिन्न है
लेकिन फिर भी एक हैं सारे।। ...)


वो....

वो फुटपाथ पर बैठी

फटे हाल रहकर भी
जीती है असीम संतोष
और धीरज के साथ.
ये फुटपाथ ही उसका घर
यही उसका संसार फिर भी
किसी से गिला ना शिकवा
दुःख सहना उसका नसीब
बेचारी लाचार और मजबूर.
बचपन उसका कुम्लाया
धूप, गर्मी में हुलसाया
अभाव में बिता यौवन
जीवन जैसे है बस पतझर .
अपने आंसू पी जाती है
बेटी को का मुख देख बेचारी
पल पल देखो है घबराती
कैसे बेटी को वो पाले..?
तन को वसन ना सूखी रोटी
दिन दिन रहती भूखी बेटी.
देह तपी और जी हुलसाया
एक दिन तब ऐसा भी आया
बस बेटी को सौंप ठिकाना
वक्त से पहले हुई रवाना.
हाय ! विधाता तेरी लीला
कैसे दिन काटेगी सुशीला
बिन माँ की ये बेटी कैसे
चौराहे में रह पायेगी ..?
पग पग में है छल छलवा
कैसे ये अब ये दिन काटेगी .?
हाय बिधाता तेरी लीला
कैसे अबला जी पायेगी...??




भोर सुहानी...

जब रोज सुबह पेड़ पर
कोयल है आवाज लगाती
जैसे कहती जागो, जागो
आई भोर आई सुहानी.
सूर्य किरण खिड़की से झांकती
मंद पवन हौले से मुस्काती
तन को होले से छू जाती
कहती जागो आलस त्यागो.
कल कल करती गंगा मइया
मधुर मधुर संगीत सुनाती,
बारिस के मौसम में रिमझिम
बूंदे मेरा मन हरसाती,
मिटटी की वो सौंधी खुसबू
आज भी तन मन बसी हुई है
बहुत याद आती है मुझको
अपने गांव की भोर सुहानी |

Saturday, 23 April 2011


शिव भोले नाथ आओं ...

शिव भोले नाथ आओं
करु तुम्हारा अभिनन्दन
लगाऊं तुम्हे मै
अक्षत चन्दन
तुम ही शिव,तुम ही सत्य
मेरे शिव भोले नाथ
प्रेम तुम्हारा
जगा रहे दिन रात
वारु सब कुछ
तुमपर सदा मेरे भोले नाथ

दूध फूल पुष्प चढ़ाऊ
हे कैलाशपति मुरारी
उमापति त्रिपुरारी
सबके दुःख हो कम
ख़ुशी होए हरदम
मानवता के लिए
करू मै कामना,
बढे परस्पर प्रेम
सहयोग की भावना,
स्वभाव मे हो इतनी शीतलता
क्रोध कि अग्नि जलने न पाए
अंतर्मन रहे निष्कपट, निश्छल, 

सत्य केवल सत्य का ही
जाप करू मै'अंतर्यामी
तुम ही भोले तुम ही
बागम्बर मेरे स्वामी,
मै मै" न रहू तुम' हो जाऊ
तुमसे मिलकर
शिव भोले नाथ आओं
करु तुम्हारा अभिनन्दन
लगाऊं तुम्हे मै
अक्षत चन्दन|



Thursday, 21 April 2011

                                                            तुम बहुत याद आये...




आज घर गयी ..
तो पापा तुम बहुत याद आये
सच बहुत याद आये ...
तुम्हारी कमी का हुआ आज आभास
कैसे किया करते थे मुझसे बातें,
तुम्हारी किताबें और तस्वीरे
याद बनकर रह गयी पास मेरे ,
आज तुम बहुत याद आये
सच बहुत याद आये ....
पापा तुम्हारी आवाज़ और चेहरा
अब स्वप्न का सा अहसास
धीरे धीरे रह गए तुम
अब काल्पनिक सत्य
मेरे अंतर्मन में,
तुमने जन्म दिया और पाला
बताया सदा सत्य बोलना
कष्टों को हंस हंस सहना
तुमने सदा ही सिखाया
आज तुम बहुत याद आये
सच बहुत याद आये ....
कैसे अपने प्रेम रुपी कवच से
घर को सुरछित रखा था
आज उन स्मृतियों को
संजोये रहती हूँ
पापा तुम्हारा बड़ा दिल
और छोटा गुस्सा
आज भी याद आता है
जब उदास होती हूँ तो
न जाने कहाँ से
आ जाते हो तुम पास मेरे
तुम आज तुम बहुत याद आये
सच बहुत याद आये ....

Thursday, 7 April 2011


फूल वाली लड़की..

सुबह मुंह अंधेरे फूल वाले से
फूल लेकर उनको सहेजती
संवारती , कुछ को गुलदस्ता
किसी को कली बना रखती।
फूल ले लो..... फूल ले लो......
   दिनभर आवाज़ लगाती..........
सड़क, चौराहे पर गाड़ियों के
पीछे भागती वो लड़की
लोगों को खुशी के पल,
भेंट के लिए फूल बेचती
अपनी खातिर दो जून की
रोटी इनसे जुटाती वो लड़की।
उसे क्या मतलब इनकी महक से
इनकी चमक से और
इनकी रंगत से उसे तो बस
रोटी का जरिया हैं ये फूल
उसके जीवन में जब कभी
वसंत ही नही आया तो
क्या जाने फूलों का रंग उनकी सुगध..?
उसके लिए तो यह फुटपाथ
उसका घर, संसार यहीं जन्मी
रोटी के लिए लड़ती, झगड़ती
और यहीं कहीं दौड़ते दौड़ते
एकदिन खो जायेगी...वो फूल वाली लड़की।

Wednesday, 6 April 2011







मुझे जग मे आने दो
आने दो एक बार ....
मुझे जन्म दो माँ
मै भी दुनिया देखूंगी
तुम्हारे सपने मे रंग भरुंगी
जग मे तुम्हारा नाम करुँगी
कभी न लगने दूंगी कोई दाग
मुझे जग मे  आने दो
आने दो एक बार ...
तुम्हारे नाम को मान दूंगी
पढ़ लिख कर मुकाम दूंगी
मुझे जग मे आने दो
आने दो एक बार ....
भाई से भी आगे बदूगी,
हमेशा तुम्हारा दर्द करुँगी
भाई की सूनी कलाई,
मे बांधूंगी राखी 
 मुझे जन्म दो माँ
मुझे जग मे आने दो
आने दो एक बार ...

Friday, 1 April 2011

  मेरे भाव.......
अचानक उठती 

कागज कलम ढूँढती  और
कुछ शब्दों को आकार देती
तब जाकर कुछ कहती।
मन में उठते अनेकों भाव
पल-पल बदलता विचारों का प्रवाह
क्या-क्या उर में भाव जगे
कुछ लिख जाती कुछ रह जाते।
सोच रही मैं भी भाव तो हूं
बस बनकर इक भाव अधूरा।
सबमें न जाने कहां खो गये।
मैं भी मेरी कविता की मानिंद
पंक्ति सधी थी जीवनपथ पर
बढ़ी मगर कुछ गढ़ न सकी
अपने सपनों की कविता सम
जो छूट गई बिन लिखी कहीं।
फिर मन कहता कुछ नहीं हुआ
अपनों का संग और अपनाघर
उनकी खातिर किया सर्मपण।
लेकिन मेरे भाव जगे हैं
मेरी कलम मेरी रचना मे
लिखकर कहकर भावों में
जो आता है लिख लेती हूं
जीवन उपवन महक रहा है।
ये क्या कम मेरे जीवन में..
अपने उर अपने सपनों को
भाव रंगों का मैं ही भरूंगी।
अर्ध राह में बिन आकार के
अब कविता न मरने दूंगी।
लिखकर अपने भाव कहूँगी
मैं अपना अब अर्थ गढ़ूंगी|



तुम कहते हो!
मुझे सहेजना  संवारना
जोड़ना, संभालना
अच्छी तरह से आता है.
तभी तो हरदम
तुम्हारे, मेरे संबंधों को
रिश्तों की ड़ोर को
अपने परायों को
रिश्तों के भावों को
हर हाल में संभाल कर रखा है.
मेरी हर कोशिश रही
की हमारा घर संसार
अपनों का स्नेह और प्यार
कभी ना कम हो ना कभी
किसी प्रकार टूटन हो.
इसके लिए मैंने चाहे
अपने जीवन, अपने स्वत्व और
सपनों को मिटा दिया.
हां सच है ये...!

जीवन 


नदी किनारे अचानक
मन में ख्याल आया
जीवन भी तो नदी की
मानिंद ही चलायमान
निर्बाध और निरंतरता
लिए चला जा रहा  है
देखो ना..! पल, पल
दिन गुजरते जा रहे
कब बचपन गया..
कब जवानी आई और
देखो तो तनिक देह को
गौर करो तो तुम्हे भी
मेरी तरह महसूस होगा
आगाज बुढ़ापे का हौले ही
सही पर अगर ईमानदारी
और निश्चलता से देखोगे तो
समझ जाओगे की समय
किस गति से गुजर रहा  है
अपने निशान कुछ समेटे और
कुछ छोडकर अहसास करता
कल आज और कल का
जीवन की नश्वरता और
पल पल का.
ये अलग बात है की
हम इसे जानकर भी
स्वीकार नहीं करते.

                                                                प्यारी सी चिड़िया ...
                                              



एक प्यारी सी नटखट सी चंचल सी चिड़िया, 
न जाने कहाँ से आई ये चिड़िया!.

न कोई ठिकाना न संगी न साथी

फिर भी बेफिक्री में जीती ये चिड़िया,

गीत गुनगुनाती, ये गाती है चिड़िया.



घरोदे से उड़कर दाने को जाती

दिनभर यूँ उड़ती है, बेफिक्र रहती

उड़ना नियति उसकी घरोंदा है मंजिल

दिनभर उड़कर ये दाना जो लाती

ये सी  न्यारी चिड़िया, ये प्यारी सी  चिड़िया.



चिड़िया सिखाती हमको भी जीना

हर हाल में सबसे मिलकर के रहना

कितना भी रूठे अपनों से हम

फिर भी तो घरबार मंजिल  है अपनी,

देती संदेशा ये प्यारी सी चिड़िया.


जाने कहाँ  से आई ये चिड़िया

देखो तो इसको समझो तो इसको

न कोई लालच न कोई भण्डार  

फिकर आज की ना, न चिंता है कल की

जीती अभी में ये प्यारी सी  चिड़िया.



इसे छोड़ जाना है, ये घर ये घरोंदा

अपनों की खातिर ये खपती ये चिड़िया

हर हल में खुश रहो, कहती ये चिड़िया

जीवन है चलना सिखाती है चिड़िया,

कितनी है भोली है ये प्यारी  सी चिड़िया.
मौत से सामना.....


डॉक्टर ने कह दिया, अब न ये बचेगी
जीवन डोर न अब खीच सकेगी
सुनकर सब हतप्रभ,ग़मगीन चहुँ ओर
मेरे उर कि आशा में बनी रही एक ड़ोर.
सलाह दर सलाह मशविरा सभी का
पल-छिन, दिन बस इतना ही जीवन इसका,
एक पल मैं अन्दर से हिल सी गयी
जब मौत कि आहट मेरे कानो मे पड़ी.
आभास हुआ अब न मैं जी पाऊँगी
अपने नौनिहाल अपनों को अधर मे छोड़ जाउंगी
बेटे कि याद ने अन्दर तक कचोटा
अनिश्चित भय ने मेरा रोम रोम झझकोरा
अपने पराये सब बिस्मित हो निहारते
अब चंद घड़ी कि मेहमां जान दुलारते,
मेरे अंतस मे एक जिज्ञासा बलवती हुई
मौत केसे आती है जानने कि चाह बढ़ी.
कैसे आएगी मौत लेने क्या कहेगी...
जब आएगी तो क्या झपट जीवन लेगी?
पर्दा हिलता या खट सी आवाज होती
मौत कि आहट है ये समझती.
अपनों की लाचारी दुःख कि ये आपार घड़ी
मेरे उर मे जिज्ञासा भविष्य कि बढ़ी
ब्यक्त में मैं खुश सी दिखती
खबर मौत की पा जरा भी ना डोली.
लोग सोचते पागल सदमे से होली
भय मौत का सुन मति इसकी पलटी
समय जैसे-जैसे बीत रहा था
दिल में जीने की ख्वाहिश की बढती.
एक औरत फरियाद कुरान की आयतें
सुफल हो गई जान मेरी बचा के
उसने दुलारा दिया था सहारा
बचेगी तू सच में जरा ना घबराना.
बहुत कुछ गवां कर ये जीवन था पाया
जन्म जैसे मेरा हुआ था दुबारा
साक्षात् मौत से हुआ था हमारा
जो सोचा नहीं था वो अनुभव हुआ था...


ऐ वक्त 



ऐ वक़्त मुझे न रोकना
मैं तुम्हारे साथ आ रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे न समझना
मैं तुम्हे समझ रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे न छोड़ना
मै चलने कि कोशिश कर रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे न रुलाना
मै हंसने कि कोशिश कर रही हूँ.
ऐ वक़्त मुझे वक़्त देना
मै अपने आप को बदल रही हूँ.
ऐ वक़्त मेरे साथ रहना
मै तुम्हारे साथ ही आ रही हूँ.
ऐ वक्त जरा ठहरना
मैं कुछ तलाश रही हूँ.
ऐ वक्त जरा रुकना
मैं जरा थक सी  गयी हूँ.
ऐ वक्त जरा पढ़ना
मैं कुछ लिखने लगी हूँ.
ऐ वक्त जरा चुप रहना
मैं जरा कहने लगी हूँ.
ऐ वक्त कभी संभलो
मैं बिखरने लगी हूँ.
कभी मेरी भी सुनना
हरदम तुम्हारी सुनती हूँ
कभी समय दो कभी रुको
जरा कुछ रचने बसने लगी हूँ.
समय



समय
कब कैसे बीता पता ही न चला
लगता है जैसे कल ही की बात है
जब बच्ची थी, स्कूल जाती थी
माँ पिता  के गले लगकर
बहुत नाज नखरे करती थी..
समय पंख लगाकर उड़ता गया
और मेरा बचपन पीछे छूट गया
जीवन की डगर में आगे बढती रही
लेकिन मेरे कुछ अपने कुछ सपने
पीछे रह गये अधूरी आस की भांति.
कब सयानी हुई, कब शादी हो गयी
बेटी से बहू और बहू से माँ बन गई
संबंधो की ड़ोर में बंधती गई इस तरह
अपने लिए तो समय ही नहीं रहा
मेरे कुछ सपने थे जिंदगी में कभी
इस भागम भाग में कहाँ गुम गये..?
समय से बहुत कुछ पाया है मैंने
बहुत कुछ खो भी गया इसे दौड़ में...

Friday, 25 March 2011









माँ
मैं सोचती हूं
बड़ी होकर मैं भी
खूब पढ़ लिखकर
कुछ नाम करूं.
चूल्हा चौका से
आगे बढ़कर
जग में अपना
परचम लहराऊं.
जानती हो माँ
तुमने हमारे लिए
अपना कल आज
और कल गँवा कर
हमारा लालन पालन
घर परिवार के लिए
पल पल गवां दिया
तुमने अपने लिए एक
पल भी अपना जीवन
नहीं जिया.
तुमने तो हमारी खातिर
अपने सपनों को खोया
हम में अपने सपने देखे
अब मैं तुम्हारे हर
सपने को पूरा करुँगी
खूब पढूंगी और माँ
अपने नाम के साथ
तुम्हारा नाम भी ऊँचा करुँगी|
तुम लड़की हो...





तुम लड़की हो...
सुनो!
जहाँ कुहासा हो
तुम वहाँ न जाना
जहाँ अँधेरा हो
वहाँ न जाना
तुम लड़की हो
ये मत भूलना
क्यों की तुम्हारा
लड़की होना किसी को
नहीं भाता है.
सुनो लड़की
इतराती, बलखाती
नदी की भांति
मत चलना
अपने हाव, भाव
संभल कर रखना.
ज़माने की निगाह
तुम पर है और
तुम्हारी हर हल चल
उनकी नजर में,
बस तुम नजरें झुककर
सहम सहम कर
डर डर कर चलो
क्यों की जन्मने और
ज़माने वाले यही चाहते
हैं तुमसे लड़की..!
बस ये याद रखना
तुम लड़की हो....

नारी..



नारी ही महकाती है 

सबके गुलशन की डाली को

नारी के आने से मिलती

भाव तृप्ति घर की क्यारी को.

नारी अपना स्वत्व मिटाकर
अपनों का जीवन संवारती 

खुद सहती है दुःख अनेकों

सुख अपनों को परोसती.

वह बचपन में पिता की,
जवानी में पति की, 

दीन बुढ़ापे में बच्चों की,
सहती है अधीनता|

अपना जीवन नहीं है अपना

सदा ही वह पराधीन है रहती 

फिर भी खुश हो करती सेवा

कभी किसे से कुछ ना  कहती 

नारी धरती, नारी अम्बर

नारी है जीवन का संबल

इसके बिन क्या घर समाज है ...



यादें..
जब मैं जन्मी जग में आई
पहले पहल चक्षु जब खोले
माँ पिता की स्नेह छाया में
तन मन पुलकित भाव सलोने.
मात पिता की थी मैं लाड़ली
बड़े जतन से पाला मुझको
नाज उठाकर हर पल मुझको
मात पिता ने बहुत दुलारा.
धीरे धीरे हुई बड़ी जब
विद्यालय को जाती मैं तब
काम धाम कुछ करे नहीं थी
बस अपनी ही दुनिया में रहती.
माँ की ममता, दुलार पिता का
अपनों की निर्मल छाया थी
बहुत चुलबुली नटखट नखरे
उनको सबसे अति प्यारी थी.
बड़ी हुई जब हुई सायानी
मात पिता की बढ़ी परेशानी
कब कैसी हो इसकी शादी?
पीले हाथ हों पति घर जाती..
जल्दी से एक लड़का देखा
झट शादी करने की ठानी
मेरे सपने, कुछ करने की
बात किसी ने कभी ना मानी.
दिन पर दिन साल दिवस
जब लगे पंख उड़ते जाते हैं
तब जाकर कुछ पल कुछ कल
के लम्हे याद हमें आते हैं.
आज माँ और नहीं पिता हैं
दोनों जल्दी गए अनंत को
तभी तो जल्दी सब कर डाला
जाने की जल्दी थी उनको.
बहुत सयाने थे वे अपने कुछ
आभास दिया ना हमको
फर्ज किये सब पूरे अपने
सौंप बड़ी जिम्मेदारी हमको.
बीते दिन जब याद आते हैं
नयन जलज मय हो जाते हैं
मात पिता की छाया थे जब
झट अनाथ क्यों हो जाते हैं?
जाना ही था कुछ कह जाते
जीवन की कुछ राह दिखाते
पहले हम गर समझ ही पाते
कुछ पल उनके संग बिताते.
याद बहुत आती हैं सच में
अपने माँ और अपने पिता की
अब यादों में संग सदा हैं
कुछ पल कुछ कल ही बस यादेँ.

Thursday, 24 March 2011



होली है रंगों का त्यौहार
हरा गुलाबी अबीर गुलाल
कई रंग हैं इसके साथ
बस रंगों को पहचानो आप.
मन का खुला आसमान हो
तो भर जातें हैं रंग अनेकों
अपनों का , सपनों का संग हो
फिर जीवन होता खुशहाल।
तिमिर हटाते रंग प्रेम के
उजियारा होता है जीवन में
बढ़ता है फिर धवल प्रकाश
रंग बिरंगे पन्ने होकर
भाव संजोते जीवन संसार।
सबकी हो मनोकामना पूरी
सबको मिले मन की मनुहार ।।



जब तुम थे
तो मै सब कुछ थी ,
आज तुम नहीं
तो में कुछ भी नहीं ,
कल तुम थे
तुम्हारा साया था
आज तुम नहीं तो
मै किसका साया हू
मै कल भी तुम्हारी,
आज भी तुम्हारी हू ,
तुम कल भी मेरे अपने थे|
तुम आज भी मेरे अपने हो
में कल तुम्हे महसूस सकती थी,
मै आज भी महसूस करना चाहती हू|

Wednesday, 23 March 2011

तुम्हारा प्यार..



तुम्हारा प्यार..
जीवन का सहारा
तूफ़ा मे किनारा
तुम्हारा प्यार...

भावों की सौगात
उम्र भर का साथ
तुम्हारा प्यारं...

आज कल परसों
मन मे फूली सरसों
तुम्हारा प्यार...

धरा कि नर्म घास
स्पदन का अहसास
तुम्हारा प्यार..

सर्दी कि गुनगुनी धूप
स्नेह प्रेम का रूप
तुम्हारा प्यार ...

हरे वृछ की पाती
जले दिए कि बाती
तुम्हारा प्यार ...

कभी लगता ज्योति
कभी लगता  मोती,
तुम्हारा प्यार ...

चूड़ियों की खनक ,
बिंदिया की चमक
तुम्हारा प्यार...

हाथो मे लगी मेहँदी मे
अंखियों मे लगे काजल मे
तुम्हारा प्यार...

उदासी मे आसुओं के बीच
विस्वास की कौंधती तस्वीर
तुम्हारा प्यार....




वो लड़की 





वो लड़की....
भोली सी
उलझी सी,
सुरमई आँखों में
उसकी सपने हैं
उर में
संगीत है
बातों मे उसकी
खिलते हुए फूल,
पैरों में
रुनझुन पैजन,
हाथों में
सपनों की रंगत,
अधरों में
प्यार के गीत,
मन में
वीणा की झंकार
दर्द से उसका
रिश्ता पुराना,
दुनियां को
उसने ना जाना,
गुमसुम रहती
दुःख सहती,
हँसते हँसते
जो रो देती,
जगते जगते
सो देती,
अनमोल निधि
खो देती.
अंतस मे
रस घोलती
उसकी बातें
उस जैसी सच्ची
आज भी मुझे
याद आती है
वो लड़की....
सच बहुत ही
याद आती है
वो लड़की....
ऐसी क्यों थी.......

Monday, 28 February 2011



नयी सुबह
 





आई सुबह हटा अँधेरा
 फैला सब ओर  उजियारा
पुष्प, कली पर ओस की बूँदें
स्पन्दन सा करने लगी हैं. 
नव अंकुर नव पल्लव देखो
प्रकृति  से बातें करने लगे हैं,
चिड़ियों का कलरव गुंजन
स्वागत बसंत का करने लगे हैं.
नभ नीला स्फूर्ति ओज्वसित
जीवन का नव सन्देश सुनाता
नव सृजन नव पल्लव अगणित
नई सुबह जीवन 
की 
सुहावनी |


Wednesday, 23 February 2011


माँ
 तुझे नमन 



माँ

एक शब्द ही नहीं
दुनिया पूरा संसार है
हर पल ध्यान धरे बच्चो का,अपनी सुध बिसराती है.


लोरी देकर  हमें सुलाती 
दाना चुगना भी सिखलाती
प्रथम गुरु बन जीवन में ,राह  दिखाती, पंथ बताती 
जीवन का आधार है माँ.

माँ सृजन करती जीवन का


जीवन जीना भी सिखलाती


प्रेम की मूरत, दया की सूरत

जीवन का आधार है माँ.
सब्द नहीं कुछ बयाँ करने को


सब्दों से बढ़कर है माँ 
कोमलता का अहसास और

भावों की धारा भी है माँ. 
इसे जग के और छोर का 
अंतहीन विस्तार माँ
सबसे पहले, ईश्वर से बढ़कर

सबसे  प्यारी अपनी माँ. 
श्री चरणों में नमन तुम्हे  
माँ तुझे नमन .....